बस्तर के धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में कैंपों के जरिए जल्द शांति आएगी। यह भरोसा पुलिस के लोगों को है। 7 जिलों में 100 से अधिक कैंप स्थापित किए जा चुके हैं, जिनमें से 33 इसी साल प्रारंभ किए गए हैं।
सुरक्षा कैंपों की वजह से न केवल नक्सलियों को बैकफुट पर जाना पड़ रहा है, बल्कि इलाके का विकास भी हो रहा है। इसके अलावा फोर्स की हर दिन की आमदरफ्त के कारण भी हथियारबंद माओवादी और उनके सहयोगी दहशत खा रहे हैं। इसका सीधा फायदा क्षेत्र में रह रहे आम लोगों को मिल रहा है।
मनीष गुप्ता, नक्सल मामलों के एक्सपर्ट
पुलिस के अफसर भी यह दावा कर रहे हैं कि कैंपों से बदलाव आ रहा है। हिंसा और मार्केट की जगह शिक्षा , स्वास्थ्य ,राशन दुकान, आंगनबाड़ी, पीने के लिए साफ पानी, सड़कें और मोबाइल कनेक्टिविटी सुविधा सुलभ होने के कारण परिवर्तन स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
नई पीढ़ी के बच्चे अब नक्सलवाद की हक़ीकत से वाकिफ हो अपना भला-बुरा समझने लगे हैं।
नक्सल इलाकों में बदलाव की बयार के चलते विकास की स्वर लहरियों की गूंज सुनाई दे रही है।
सुंदरराज पी, बस्तर आईजी
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मूलभूत सुविधाओं की पहुंच शनैः शनैः आम आदमी तक पहुँचने के कारणब आदिवासियों ने नक्सलियों की तथाकथित जनताना सरकार से इसकी तुलना की।
स्वाभाविक था कि उनका झुकाव हिंसा से उकताहट की वजह से लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति होना स्वाभविक है। सुरक्षा कैंपों से माओवादी गतिविधियों पर नियंत्रण बढ़ा है और इन इलाकों में विकास की राह भी खुलने लगी है। ग्रामीणों की सुरक्षा के साथ ही जीवन स्तर में भी निरंतर सुधार आ रहा है। जीवन आसान होता दिख रहा है।